Yellow Sapphire - पुखराज - 3.5 Cts

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बृहस्पति ग्रह से संबंधित रत्न, पुखराज को संस्कृत में पुष्पराग, हिन्दी में पुखराज कहा जाता है। चौबीस घंटे तक दूध में रखने पर यदि क्षीणता एवं फीकापन न आए तो असली होता है। पुखराज के गुण- चिकना, चमकदार, पानीदार, पारदर्शी एवं व्यवस्थित किनारे वाला पुखराज दोषरहित होता है। इसे ही धारण करना चाहिए। दोष वाला पुखराज धारण न करें।
दोषपूर्ण पुखराज एवं उसके प्रभाव
(1) सुन्न- चमक रहित जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक,
(2) चीरी-धारी या लकीर दिखे- बंधु-बाँधवों से विरोध,
(3) दुधिया श्वेत- शरीर पर चोट का डर,
(4) जाल- कई धारियाँ- संतान के लिए हानिकारक,
(5) श्याम तथा
(6) श्वेत बिन्दु का- घातक है,
(7) रक्तिभ-लाल छींटे- धनधान्य नाशक,
(8) खड्डा- लक्ष्मी घटाए
इस तरह का दोषपूर्ण पुखराज लाभ के स्थान पर हानिकारक होता है। इसलिए दोषरहित पुखराज ही धारण करें।
पुखराज क्यों पहनें
भाग्यवृद्धि, सुख-सौभाग्य, विकास-उन्नति, समृद्धि, पुत्र कामना, विवाह एवं आध्यात्मिक समृद्धि हेतु पुखराज धारण करना चाहिए। गुरु ग्रह जीवनदाता है। यह वसा एवं ग्रंथियों से संबंध रखता है। अतः यह गला रोग, सीने का दर्द, श्वास रोग, वायु विकार, टीबी, हृदय रोग में धारण करने से लाभप्रद होता है।
पुखराज पाँच रंगों में पाया जाता है- हल्दी रंग में, केशर/केशरिया, नीबू के छिलके के रंग का, स्वर्ण के रंग का तथा सफेद-पीली झाँई वाला।
प्रभावोत्पादक पुखराज का चुनाव एवं प्रभाव
गुरु ग्रह के निर्बल होने पर पुखराज धारण करने से उसके शक्तिशाली होने से ऋणात्मक प्रभाव समाप्त हो जाता है।
सावधानियाँ : पुखराज के साथ पन्ना व हीरा न पहनें; हो सके तो अकेला ही पहनें।
वृषभ, तुला, मकर लग्न वाले पुखराज न पहनें परंतु 3 भाग्यांक वाले, गुरुवार को जन्मे तथा जिनकी कुंडली में कर्क राशि पर सूर्य-चंद्र-गुरु हो अवश्य पहनें। रोगों के लिए पुखराज धारण करने के पहले वैद्य से अवश्य सलाह लें।
धारण करने की विधि, समय एवं सावधानियाँ 6/11/15 रत्ती का धारण न करें। पुखराज निर्दोष होना चाहिए। शुद्ध सोने में मढ़वा कर तर्जनी, बृहस्पति की उँगली में धारण करें। गुरु-पुष्य, रवि-हस्त को अँगूठी को दूध, शुद्ध जल या गंगा जल से प्रक्षालन करें एवं पूजा करें। 'ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः' या 'ॐ ज्ञां ज्ञीं ज्ञूं सः जीवाय नमः'मंत्र की 5 माला फेरकर पूर्वान्ह 11 बजे के पूर्व धारण करना चाहिए।


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